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ऐसा तो कुछ भी नहीं

प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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हमे आदत सी हो गयी है रातों मे जगने की,
जाने नींद कहाँ गुम है पता नहीं ,
धड़कने ये कहती हैं तुम्हें इश्क़ हुआ है ,
जब से तुमने उन्हे देखा
धत्त….
झूठ कहती है ऐसा तो कुछ भी नहीं ,
मगर फिर ये बेचैनियां हैरानियाँ क्यू ?
हमे आदत सी हो गयी है जागती आँखों से भी
ख्वाबों मे उन्हे तलाशने की ,
दिन को रात करने की रात को दिन करने की ,
ख्वाइशें मेरी कहती है तुम्हें इश्क़ हुआ है,
जब से उन्होने तुम्हारे मन को छुआ है,
धत्त….
झूठ कहती है ,
ऐसा तो कुछ भी नहीं फिर ये लिखना क्यू ?
उनकी ही बातें क्यू ?
ये जज़्बात की आँधी क्यू ?
रोकूँ तो कैसे रोकूँ खुद को ये बता दो सिर्फ,
ये उनके साथ ना होने पर भी मुलाकातें क्यू ?
हमे आदत सी हो गयी है ऐसा करने की,
जाने क्या होगा पता नहीं ?
गुजरते ये लम्हे कह रहे है ,
हाँ तुम्हें इश्क़ हुआ है ,
और मै शर्मा रहा हूँ कह रहा हूँ ,
धत्त….
ऐसा तो कुछ भी नहीं।

~ प्रसनीत यादव ~

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