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यादों का खेल

प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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आओ खेलें यादों का खेल ,
बुला लें गुजरे लोगों को ,
हांथ थाम कर फिर उनका
सपना देखें ,
गैरों मे भी हम अपना देखें ,
छोटी-छोटी बड़ी-बड़ी
आओ खेलें यादों का खेल ,
ये खेल बड़ा निराला है ,
हुआ नहीं जो तब पूरा
आओ कर लें पूरा
खट्टी-मीठी यादों से
आओ कर लें फिर से मेल ,
सुना कर एक कहानी,
जो बीत गयी हमारी अपनी,
उन किस्सों को खास बनाते हैं,
चलो आज हम सब फिर
जी भर कर मुस्कुराते हैं ,
ये यादों की शाम मुबारक सबको,
ये भी एक नशा यारों ,
एक-एक जाम मुबारक सबको ,
जरा होठों से लगाओ तो
दिल की कुछ कह जाओ तो ,
जैसे नहाये बरसात मे,
इन यादों मे नहाओ तो ,
सब आओ खेलें यादों का खेल ,
ये खेल बड़ा निराला है ,
मै भी तो नशे मे देखो ,
खेल-खेल मे जाने क्या-क्या ?
मैंने कह डाला है ,
सोचों न इंतज़ार करो ,
खुल कर जरा इज़हार करो ,
इन यादों से भी प्यार करो ,
इन यादों से भी प्यार करो ,
ये खेल बड़ा निराला है।

~ प्रसनीत यादव ~

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