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आईये हिंदी की ताजपोशी में आपका स्वागत है ‘कांटेस्ट’

प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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अँगरेज़ चले गए अंग्रेजी छोड़ गए ये बात हम सबने कई बार सुनी है और इसका पूरी तरस असर हुआ है आस-पास महसूस कर रहे है हम। एक बात जो हर कहीं हर किसी में देखी जा रही है वो है दिल देशी और लहज़ा विदेशी होने का अंदाज़। हिन्दुस्तान में इंगलिश्तान का बुखार। अंग्रेजी के बिना किसी का करिअर नहीं बन सकता, अगर आप को हिंदी आती है आप हिंदी बोलते हो तो बहुत पीछे हो। ये बात हमें वो लोग बता रहे है सिखा रहे है जो इसी सरजमीं पर पढ़े-लिखे, बड़े हुए, उनसे पूंछता हूँ हिंदी से इतनी नफरत क्यों यार ? अंग्रेज़ी भाषा अच्छी है बोलनी भी चाहिए मगर अंग्रेजियत का बुखार अच्छा नहीं। हिंदी की तौहीन अच्छी नहीं बॉस….

समीर साहब का शेर याद आ रहा है
अर्ज कर रहा हूँ

ये नगमे न होते ये शिकवे न होते
हम नए न होते गर वो पुराने न होते।

अगर काम अंग्रेजी के बिना नहीं चलने वाला तो काम हिंदी के बिना भी नहीं चलने वाला। वो हमारी अपनी पहचान है पूरी जिंदादिली के साथ बेहतर ढंग से हम हिंदी का इस्तेमाल करे। अंग्रेजी भी बोलें लेकिन इस वहेम में ना रहे की अंग्रेजी ही सब कुछ है और इसके बिना काम नहीं चलेगा।

हिंदी फिल्मों की बात करें तो आज भी वो गाने जिनमे शब्द चयन बहुत अच्छा है लोग उन्हें पसंद करते है। उन गानों को गाते है. पुराने हिंदी गाने संगीत से तो सजे ही होते थे भाषा भी उनकी सफलता का एक बहुत बड़ा कारण थी, जो कल भी सफल थे सफल है और रहेंगे। आजकल वो गाने जिनमे हिंदी बहुत कम अंग्रेजी कूट-कूट कर भरी जाती है वो गाने हिंदी फिल्मो और गानों का शौक रखने वालों के गले नहीं उतरते। अफ़सोस उन गानों की एक भी पंक्ति हमें याद नहीं रहती और उन्हें हम दुबारा सुनना भी पसंद नहीं करते। क्या करें दिल ही नहीं लगता ? कोई चीज़ हम पर जबरन थोप दी जाए तो क्या भला वो हमें पसंद आएगी ?
महानायक बच्चन जी किसी भी समारोह पर किसी रियलिटी शो पर बेहतर से बेहतर हिंदी भाषा का इस्तेमाल करते है। हिंदी में लिखते भी बहुत अच्छा हैं। अंग्रेजी भी बोलते है जहाँ जरुरत हो। कोशिश रहती है उनकी अपनी, ज्यादा से ज्यादा वह हिंदी का इस्तेमाल करें अपनी पहचान बरकरार रखें। यही होना चाहिए बल्कि ये नहीं की किसान के आगे भाषण दें तो अंग्रेजी बोलें। वो किसान क्या समझेगा यार जिसे अंग्रेजी भाषा समझ नहीं आती। हम जिस भाषा में पले- बढे होते है उसी भाषा में अपनी बात बेहतर से बेहतर ढंग से कह सकते है। समझ और समझा सकते हैं।

अब अंग्रेजी माध्यम के स्कूल-कालेजों को ही ले लीजिये जनाब। अगर कोई छात्र या छात्रा जो हिंदी माध्यम से अंग्रेजी माध्यम में दाखिला लेते है, यह सोंचकर की उन्हें कुछ बेहतर सीखने को मिलेगा। उनके साथ वहां बड़ा अजीब व्यवहार होता है। अंग्रेजी छात्र छात्राएं तो अलग वहां के टीचर तक उनके साथ ऐसा व्यवहार करते है जैसे वो किसी दूसरे प्लानेट से आयें हैं ….अमां क्या सोंच है यार ?अब या तो वो बेचारे स्कूल छोड़ दें या फिर हिंदी भूलकर अंग्रेज़ी के उसी माहौल में ढल जाएँ।
कई सालों पहले दैनिक जागरण में एक लेख पढ़ा था जिसका शीर्षक था “हिंदी छात्रों की तुलना कुत्तों से” बड़ा ही गंदा फील हुआ था। यार कैसे हम अपने ही हांथों सिर्फ नक़ल-नक़ल में अपनी हिन्दिज्म का पतन कर रहे है। ऐसा ही हो रहा है सर जी। ये मै नहीं कह रहा ये चीख चीख कर हो रहा हिंदी के साथ दुर्व्यवहार कह रहा है, ये हिंदी बोल रही है। ऐसे छात्र छात्राओं का नामकरण उनके अंग्रेजी विद्यालय में दाखिला लेने के स्वागत में अंग्रेजी छात्र-छात्राओं द्वारा किया जाता है कुछ एक दो नाम याद है लिख रहा हूँ जैसे अगर वो ज्ञान विद्या पीठ नाम के स्कूल से आया है तो मिस्टर ज्ञान विद्या पीठ, या फिर भवानी इंटर कालेज से आया है तो मिस्टर भवानी, छात्राओं के नाम के आगे भी मिस हिंदी मीडियम वगैरा वगैरा. हा…. हा…. हा….थोड़ी हंसी आ गयी ऐसे लोगो पर जो अँगरेज़ बनते है नाम होता है राम लाल अंग्रेजी पढ़कर स्पाइडर मैन के पीटर पार्कर बनने की कोशिश करते हैं।
अंग्रेजी की अच्छी समझ रखने वालों से मिलिए उनके पास अंग्रेजिअत का नशा या बुखार नहीं है वो सभ्य है और हर भाषा के महत्व को समझते है। जागरण जंक्शन में हिंदी की धूम देखकर अच्छा लग रहा है, सबके पोस्ट पढ़े मैंने जो महसूस किया लिख दिया। फिल्म मेकिंग का छात्र हूँ। सीखते रहना मेरी ज़िन्दगी है हिंदी में लिखता हूँ बिंदास बोलता हूँ। अंग्रेजी भी समझता और वक़्त पर समझाता हूँ।

हिंदी की ताजपोशी करने का ये बेहतर समय है यहाँ पलड़ा हिंदी की तरफ भारी है।

~ प्रसनीत यादव ~
© PRASNEET YADAV

19 Sep, 2013

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