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धूप आ रही धीरे-धीरे

प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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धूप आ रही धीरे-धीरे
मन के इस कोने से उस कोने तक
धूप जा रही धीरे-धीरे
गुनगुन करती देह को
ठंडक मिटा रही धीरे धीरे
बड़ा अच्छा लगता है
धूप सेंकना आजकल
वो जख्म जो मिले घाव भरे नहीं
अब तक
उन्हें मिटा रही धीरे धीरे
लौट रहे बचपन के दिन
गुज़री हुई गलियों के चित्र
बना रही धीरे-धीरे
मीत जो बिछड़ गए
कानो में गूंजती आवाज़ें वो
बंधन जुड़ा रही धीरे-धीरे
खोया है हमसे जो हमारा कहीं
बैठ कहीं तन्हाई में
साथ सूरज कि ये किरणे
उसे मिला रही धीरे-धीरे
बूढी दादी कहती थी
हाँ यही वो दिन थे याद है मुझे
आ धूप सेंक ले आकर
तबियत भली हो जायेगी
आते- जाते जाते-आते
क्या कुछ बता रही धीरे-धीरे
गुनगुन करती देह को
मन के इस कोने से उस कोने
ठंडक मिटाती
धूप आ रही धीरे-धीरे
जा रही धीरे-धीरे।

~ प्रसनीत यादव ~

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