प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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तुम्हे लगा तुम प्रेम को समझते हो
अभी और समझो करीब से जानो
जितना करीब जाओगे चोंट जितनी खाओगे
इसमें उतरते जाओगे
हाँ ये नाजुक है माना कि
कोमल फूलों कि पंखुरियों जैसा
मगर इसमें भी कांटें हैं
और फिर वो प्रेम ही क्या ?
जिसमें कांटे न हों
न हो जिसमें दर्द कि चुभन
हाँ तुम्हे लगा तुम प्रेम को समझते हो बेशक
मगर उससे कहीं ज्यादा
अभी समझने कि कोशिश करते हो
सीखो इसकी भाषा
ये एहसास बहुत गहरा है
उतरो इसकी गहराई में समाते जाओ
ये प्रेम वो नहीं जो तुम करते आये अब तक
ये प्रेम वो है जो दिखता नहीं तुम्हे भी
हाँ तुम प्रेम को समझते हो
तुम्हे लगा इसलिए
मेरी मानो इसे और समझो
अभी अधूरा है सिलैबस
करीब से जानो शब्द नहीं अर्थ भी
जितना करीब जाओगे चोंट जितनी खाओगे
जितना सह पाओगे
प्रेम उतना करते जाओगे।
~ प्रसनीत यादव ~
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