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मन में उमड़ते भावों कि मेरी डायरी से। …

प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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इस बदलते मौसम में क्या लिखूं? मेरा ये पोस्ट जाने कहाँ पढ़ा जाए कौन कौन इसे पढ़े कौन नहीं ? वहाँ सर्दी हो धूप हो , मौसम बसंती हो या फिर आसमान में बादल छायें हों या फिर बादलों के बीच सूरज कि हो रही हो लुकाछिपी. कोई आसमान को देख रहा हो कोई गुनगुनी धूप सेंक रहा हो. किसी ने आज फिर कॉलेज बंक किया हो या फिर कोई कॉलेज कैंटीन में बैठा किसी को याद कर रहा हो? हो सकता है शायद…. वजह कोई भी हो मौसम कहीं पर कैसा भी हो – हम लिख रहे हैं अपना काम है शौक है. समुन्दर कि लहरों सी उठ रहीं मन में ये बातें हमसफ़र है मेरी. कई दिनों पहले कुछ लाइन्स पढ़ीं थीं- “कुछ कर गुजरने के लिए मौसम नहीं मन चाहिए” हाँ जी इस मौसम पर सॉरी-सॉरी मौसम नहीं मन पर बहुत कुछ डिपेंड करता है. ये मन ही तो….हमें किसी और के मन से मिलाता है. ये मन ही हमें ऊपर उठाता है बहुत ऊपर और कभी नीचे गिराता है. मन वो है जहाँ हम नहीं होते वो होता है. वो जिसे हमने कभी देखा न हो ये मन उसे देखता है.
बड़ी धूप लग रही है आज, मै इस वक़्त जहाँ बैठा हूँ. मन करता है किसी पेड़ कि छाया तले चला जाऊं. ये मन मानता नहीं है कभी धूप मांगता है कभी छाया. चलो धूप में ही बैठते हैं और थोड़ी देर. बात शुरू कि थी मैंने इस बदल रहे मौसम से. इंसान भी तो बदलता है बदलाव होना भी ठीक है वक़्त के साथ. क्या रखा है अतीत कि यादों में यादों के सिवा. जिंदगी या फिर सच ? हाँ अतीत से कुछ सीख सकते हैं तो सीख लें. वर्तमान सच है. बीते कल कि बातें आने वाले कल कि बातें खाली पलों में ये साथ होती हैं. कभी तो इनसे हमें ख़ुशी मिलती है कभी चिंता, कभी कोई पुराना जख्म फिर से उभर आता है. पर सच है ये वर्तमान ”present ” जो चल रहा है दौड़ रहा है १-१ सेकंड. रोकना तो दूर हम इसे पकड़ भी नहीं सकते हैं. हाँ इन पलों में अपनी ज़िन्दगी जरुर जी सकते हैं. खट्टी-मीठी चटपटी सी ज़िन्दगी. स्वाद भर सकते हैं. स्वाद ले सकते हैं. आने वाले कल कि सोंच में बीते कल कि सोंच में इसे क्यों गवाना. ये भी लम्हा-लम्हा कटकर बीता कल बनने वाला है.
कल कि बात पर याद आया कल कुछ नहीं लिख पाया. अब कल को सोचकर होगा क्या? क्या वो वापस आएगा और कहेगा “हैल्लो मिस्टर लो मै वापस आ गया करो आज जो करना है कुछ विशेष जो तुम यादगार बनाना चाहते हो” क्या होगा ऐसा कुछ…..
ये हैण्ड वॉच कि लगातार चलती सेकंड वाली सुई, ये सर के ऊपर से थोड़ा आगे जाता सूरज , ये चलती तेज़ हवा जैसे पेड़ के पत्ते टूट कर अभी बिखर जायेंगे सब कुछ दिख रहा है मुझे ….ये बदलता मौसम ….चलते चलते अभी यूँ ही शाम हो जायेगी. सर्दियां भी तो हैं इधर दिन को गर्मी रात को सर्दी. पता नहीं आपके तरफ कैसा मौसम होगा… यही तो मौसम है…. होगी शाम इधर सूरज के छुप जाने के बाद बदन पर फिर फुल स्वेटर.
स्वेटर से याद आया…. सर्दियों में जैसे हम ऊन से सलाई के जरिये स्वेटर बुनते हैं. ठीक वैसे ही मौसम कोई भी मुझे कलम के जरिये या फिर की- बोर्ड कि टक-टक के जरिये कागज़ पर ये शब्द बुनना अच्छा लगता है. मन में उमड़ते भावों को संजोना ….
आशा है सर्दी हो धूप हो , पतझड़ हो या फिर बसंत सभी अपने मौसम को एन्जॉय कर रहे होंगे, अभी के लिए इतना ही खाना खाने का वक़्त है. आगे क्रमशः …. फिर मिलेंगे। …

~ प्रसनीत यादव ~

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