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कल का सूरज

प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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किसी रंगीन ख्वाब सा देखा है कल का सूरज ,
आज शाम ढलती है ढलने दो ,
आज अधूरा चाँद ही सही ,
कल पूरे चाँद कि होगी रात
कहानी होगी फिर शवाबों में
पढ़ोगे तुम अल्फाज़ किताबों में
चमकते सितारे फैलें होंगे दूर गगन तक
मिलेंगे हम हँसते-खेलते तुम्हारे इरादों में
धूप छाँव सा किसी हसीं साथ सा
देखा है कल का सूरज
मिल रहे पवन के झोंके देखो कैसे /?
लगाएंगे ये भी गले ,
घुल रहा संगीत कैसे उतर रहा साँसों में ,
देखे हमने कई शौक नवाबों में ,
सुनो ये हमारा तरीका है बात कहने का ,
हमारा सलीका भी। ….
जानते हो तहज़ीब के बोल बड़े अनमोल ,
आज हैं खाली हाँथ सही
तो क्या गिनती अपनी भी नवाबों में
कल फूल पे भंवरे बैठेंगे
डाली डाली पंछी ये सारे चहकेंगे
पेड़-पौधे नदी झरने सब झूमेंगे ,
देखना जरुर आँखों से.…
हौसले आसमा चूमेंगे ,
किसी नयी मुलाकात सा होगा वो कल का सूरज
जेहन में उठते अपने जज्बात का ,
इठलाता सुहाना वो। …
आज बात अधूरी है पूरी होगी ,
रोशनी कि चादर फैली होगी
ओढ़ जिसे चैन से सोयेंगे हम
हाँ किसी मीठी ,शीतल, सुकून
भरी रात सा होगा जरुर वो कल का सूरज।

~ प्रसनीत यादव ~

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