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“वो कमरा याद आता है “

प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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” वो कमरा याद आता है ” अख्तर साहब के इन खूबसूरत अल्फ़ाज़ों में खोने का वक़्त है। ये कविता उस जहाँ में ले जाती है । जहाँ कभी हमारा बचपन खेला करता था। जहाँ कभी हम माँ की डांट सुनते थे और डांट के बाद माँ प्यार से हमें मनाती थी। उस घर की कहानी है जिसकी दहलीज़ से पापा की उंगली थाम हम घूमने जाते थे और दुबारा वहीँ वापस आते थे । वो घर का एक कमरा हमारा अपना था। जहाँ हम सब साथ रहते थे भाई-बहन माँ-पापा। साथ मिलकर खाना खाते थे साथ बैठ टी. वी. देखते थे। खेल खेलते थे लड़ते थे फिर एक हो जाते थे। वो कमरा हमारे परिवार जैसा ही तो था और उस कमरे में रखी एक एक चीज़ भी। जिसे हम अपने नन्हे हाथों सहेजते थे। वो घर में रखी चीज़ें उनके साथ अपना जीवन जीते थे। वो कमरा यादों का कमरा उसकी कभी न मिटने वाली तस्वीरें। सौंप रहा हूँ अपना यह काम और अपने अल्फ़ाज़ उम्मीद है पसंद आएंगे। साथ में मैं और रितु आभार व्यक्त करते है बिंदु जी का जिन्होंने इसमें हमारा सहयोग किया।

बड़े दिनों बाद ऐसे मुकाम आते हैं
दोस्त दोस्त के काम आते हैं।
यूँ तो पंछी उड़ जाते है नए घर
साथ पुराने किस्से तमाम आते हैं ।
हाँ जानते है हम भी
ज़िन्दगी में बड़े तूफ़ान आते हैं।
चढ़ते सूरज को
अच्छे अच्छों के सलाम आते हैं।
खोये है गुमनाम जो
जेहन में ऐसे कई नाम आते हैं।
वो कहते है तुम दिखते नहीं आजकल
हम तो यहाँ सुबह शाम आते हैं।
ये तोहफा यारों तुम सबके लिए
मेरे प्यार के इसमें कई जाम आते हैं।

~ प्रसनीत यादव ~

Poetry “वो कमरा याद आता है”
Written By जावेद अख्तर
Voice रितु राज
Edited By प्रसनीत यादव

© PRASNEET YADAV 2014
https://youtube.com/watch?v=c1sTysYXzXU

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