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मुझे आदत मत बनाओ
मैं दरिया हूँ बहता जाऊँगा
जाने कहाँ जाऊँगा
सागर में मिल
उसकी कितनी गहराई तक
जाने किस छोर तक
मुझे आदत मत बनाओ
मैं तिनका हूँ
जाने कहाँ उड़ जाऊँगा
हवा के एक रुख से
या पैरों तले कुचला जाऊँगा
मुझे आदत मत बनाओ
मौसम हूँ
बदलता जाऊँगा
बस पल दो पल मिलता जाऊँगा
हँसता जाऊँगा खिलता जाऊँगा
मुझे आदत बनाना
ठीक नहीं
एक अनजान मुसाफ़िर सी
फितरत मेरी
साथ चलता जाऊँगा
बिछड़ता जाऊंगा
मुझे आदत मत बनाओ
मैं एक नशा
चढ़ता जाऊँगा
उतरता जाऊंगा
देखो ये ठीक नहीं दिल का
लगाना
सोंच लो
बेचैन तुम्हे करता जाऊँगा
मुझे आदत मत बनाओ
बस इतना कर दो
डरता हूँ
नहीं चाहता जब दूर जाऊं
तुमको आंसूं दे जाऊं
तोड़ जाऊं खिलौने सा
कहता हूँ फिर
दिल को कितना भी बहलाना
मुझे आदत मत बनाना
मैं एक पंछी हूँ
जाने कहाँ मुड़ जाऊँगा
किस झुण्ड में मिल जाऊँगा
या कहीं खो जाऊँगा
नहीं मालूम खुद
मैं किधर जाऊँगा
बीच मझधार
या फिर किसी किनारे पर।
~ प्रसनीत यादव ~
०५/२५/१४
© PRASNEET YADAV 2014
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