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मज़दूरी की आग में

प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
प्रसनीत यादव ब्लॉग्स
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  • 60 Comments


वर्ल्ड चाइल्ड लेबर डे पर अपनी दो कवितायें साझा कर रहा हूँ। एक कविता फिल्म भी बनायी है हमने। आप सारे दोस्त आदर आमंत्रित हैं प्रतिक्रया और इस विषय पर अपने विचार साझा करने हेतु। आभार ।

______
1- कई दिनों पहले लिखा था
कई दिनों पहले पढ़ा था
भूखे बच्चे दर-दर की
ठोकरे यहाँ खाते हैं
जिन हाथो में किताबें हों
उन हाथों से ईंट और पत्थर उठाते हैं
रोटी के एक सवाल पर मिलता नहीं जवाब
कुछ बच्चे हैं लाचार मन से बीमार
मजदूरी की आग में
बचपन अपना झुलसाते हैं
क्या इसे बादल का शोर कहें
या कहें आँख से निकला आंसू
कई दिनों पहले कहा था
ये दर्द पहले भी सहा था
कुछ बच्चे हैं जो अपने हाथों
गर्दन अपनी दबाते हैं
घुट घुट कर जीना ही तो ये
क्या ये वो भविष्य नहीं ?
जिसकी राहों में कांटे हम बिछाते हैं
हम ही तो गंदा करते
फिर इनसे क्यों कतराते हैं
कहना है आसान बहुत
इन बच्चों की मजबूरी को
समझना मुश्किल
इस छोटी नन्ही दुनिया की
हम बोली यहाँ लगाते हैं
कई दिनों पहले मिला था
कुछ सोचकर मैं फिर चला था
कुछ बच्चे अनाथ यहाँ
जो खिलौनों के आभाव में
सयाने तक हो जाते हैं
मन को मारकर
सब कुछ हारकर
रोटी के एक सवाल पर
मिलता नहीं जवाब
कुछ मजदूर बच्चे
पेट के खातिर
जाने किस धुन में चूर बच्चे
देख जवानी भी रोये
लिखी गयी जो इनके नाम
देख कहानी भी रोये
मांग का सिन्दूर जैसे साफ़ हुआ
अब तक न हमको एहसास हुआ
सूने-सूने सपने न इनके कोई अपने
न अब तक इनके कोई साथ हुआ
आज भी बिक रहा काले बाज़ार में
ये अनमोल बचपन
मजदूरी की आग में झुलसता ये कठोर बचपन ।

~ प्रसनीत यादव ~

______

2-बचपन कि उन्ही गलियों से आज फिर गुज़रना हुआ

जहाँ बचपन बूढ़ा था

जो चंद रोज पहले देखा वही आज था

जवानी के आगे झुका हुआ

हुकूमत कि डोर से बंधा, रुका हुआ

शोषण कि मार से

बोझ नाजुक कन्धों पर उठाता

लहू के एक एक कतरे सा

पसीना बहाता

वक़्त के पहले सयाना होता

बचपन के मतलब से बेगाना होता

बचपन कि उन्ही गलियों से आज फिर गुज़रना हुआ

जहाँ बचपन कोरा था

जो चंद रोज पहले था वही आज था

धूल में मिला हुआ

अत्याचार के धागे से सिला हुआ

कुछ मुरझाया सा कुछ अधूरा खिला हुआ

पत्थर पे रख सर अपना सपने सजाता

सुबह फिर काम पर लग जाता

ये वो बचपन

जो वक़्त के पहले सायना होता

बचपन के नाम से अनजाना होता

बचपन कि उन्ही गलियों से आज फिर गुज़रना हुआ।

~ प्रसनीत यादव ~

“Majdoori Ki Aag Me” a Film Against Child Labour

A Film By Shivani & Prasneet

Produced By & Voice -Shivani Tripathi

Poetry & Direction- Prasneet Yadav

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You Tube Film

बचपन कि उन्ही गलियों से आज फिर गुज़रना हुआ
जहाँ बचपन बूढ़ा था
जो चंद रोज पहले देखा वही आज था
जवानी के आगे झुका हुआ
हुकूमत कि डोर से बंधा, रुका हुआ
शोषण कि मार से
बोझ नाजुक कन्धों पर उठाता
लहू के एक एक कतरे सा
पसीना बहाता
वक़्त के पहले सयाना होता
बचपन के मतलब से बेगाना होता
बचपन कि उन्ही गलियों से आज फिर गुज़रना हुआ
जहाँ बचपन कोरा था
जो चंद रोज पहले था वही आज था
धूल में मिला हुआ
अत्याचार के धागे से सिला हुआ
कुछ मुरझाया सा कुछ अधूरा खिला हुआ
पत्थर पे रख सर अपना सपने सजाता
सुबह फिर काम पर लग जाता
ये वो बचपन
जो वक़्त के पहले सायना होता
बचपन के नाम से अनजाना होता
बचपन कि उन्ही गलियों से आज फिर गुज़रना हुआ।
~ प्रसनीत यादव ~
“Majdoori Ki Aag Me” a Film Against Child Labour
A Film By Shivani & Prasneet
Produced By & Voice -Shivani Tripathi
Poetry & Direction- Prasneet Yadav

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